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भगवान शिव को क्यों पसंद है बेलपत्र? देवी लक्ष्मी जी ने क्यों की थी बेलपत्र की पूजा? जानें इसके पीछे की कथा

भगवान भोलेनाथ की अनंत लीलाएँ हैं। देवों के देव महादेव को उनके भोलेपन के कारण ही ‘भोलेनाथ’ कहा जाता है। इसका मतलब है कि उन्हें प्रसन्न करना बहुत ही सरल है, और वे एक लोटे के जल और एक बेल पत्र से ही पूरी तरह तृप्त हो जाते हैं। हम शिवालयों में जाकर भगवान शिव (Bhagwan Shiv) की प्रिय वस्तुओं को अर्पित करके उनकी कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। बेल पत्र को विशेष रूप से देखा जाता है, क्योंकि शिव पूजा को बिना बेल पत्र के अधूरा माना जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भोलेनाथ के लिए बेल पत्र इतना प्रिय क्यों है? बेल पत्र ने शिव जी के साथ कैसे नाते को जड़ा और कैसे यह भोलेनाथ का प्रिय पत्र बन गया? आइए जानते हैं।

देवी पार्वती को शिव जी ने सुनाई कथा

शिवमहापुराण के अनुसार एक समय सतयुग में भगवान शिव और भगवती पार्वती, कैलाश पर विराजमान थे। उस समय, देवी पार्वती ने जनकल्याण और मानवहित के लिए भोलेनाथ से पूछा, “हे महेश्वर! मुझे यह जानना है कि आपकी पूजा में बेलपत्र क्यों जरुरी होता है? क्या आपको बेलपत्र के सिवा और कुछ पसंद नहीं है?”

भगवान महादेव ने उत्तर दिया, “हे महेश्वरी, आप सर्वज्ञ हैं। संसार में ऐसा कुछ नहीं है जो आप से छिपा हो। यह माया रूपी संसार आपकी ही माया है। लेकिन यदि आप चाहती हैं कि मैं आपको बेलपत्र के महत्व का वर्णन करूँ, तो सुनिए।”
फिर, भगवान शिव ने भगवती पार्वती को जगत के कल्याण और मनुष्य के उद्धार के लिए बेलपत्र के महत्व को समझाया।

“एक बार भगवान नारायण क्षीरसागर में शेषनाग की शय्या पर लेटे हुए थे, और देवी लक्ष्मी उनके पैर दबा रही थी। उन दिनों, उनके बीच में मानसिक रूप से आपसी वार्तालाप था। तभी भगवान विष्णु ने अपनी माया से ऐसी परिस्थिति बनाई कि देवी महालक्ष्मी भगवान श्रीहरि से रुष्ट हो गईं और जब भगवान नारायण ने अपने आँखें खोलीं, तो देवी लक्ष्मी उनकी पूजन के लिए पृथ्वी पर चली गईं। उन्होंने श्रीशैल पर्वत पर अपनी आराधना करने के लिए एक पार्थिव शिवलिंग बनाया। यह पर्वत वर्तमान में भारत के आन्ध्र प्रदेश राज्य के कर्नूल ज़िले में स्थित है। लक्ष्मी जी वहां गई और पर्वत पर शिवलिंग की पूजा करने लगीं। कुछ समय बाद, उन्होंने अपना देवी स्वरूप छोड़कर उसी पर्वत पर एक वृक्ष के रूप में जन्म लिया और उस वृक्ष के फूल और पत्तियों से निरंतर शिवलिंग की पूजा की, जिसका कोई अंत नहीं हुआ।”

लक्ष्मी जी को मिला ‘हरिप्रिया’ का वरदान

यह से भगवान महादेव प्रसन्न हुए और देवी लक्ष्मी को दर्शन करके कठिन तपस्या करने की वजह पूछी और उनसे वरदान मांगने का अवसर मिला। देवी लक्ष्मी ने कहा, “हे महेश्वर! क्या ऐसा कुछ है इस भूमण्डल में, आकाश और पाताल में, जो आपसे छिपा हो? हे उमापति भोलेनाथ, जिस प्रकार आपके हृदय में श्रीराम का आवास है, ठीक वैसे ही मैं भी श्रीहरि के हृदय में सदैव वास करना चाहती हूँ।”

इस पर महादेव ने देवी लक्ष्मी को श्रीहरि के वक्षस्थल में निवास और हरिप्रिया होने का वरदान दिया। देवी लक्ष्मी ने उत्तर दिया, “हे प्रभु! मैंने जिस वृक्ष के रूप में आपकी पूजा की है, वह त्रिदेव का प्रतीक है। मेरे ह्रदय में नारायण का वास है, जिनकी नाभि से ब्रह्मा जी उत्पन्न हुए हैं। मैंने अपने मनोरथ के लिए आपकी आराधना की है। अब से बेलवृक्ष की जड़ों में देवी गिरिजा, तने में देवी महेश्वरी, शाखाओं में दक्षायनी, पत्तियों में त्रिदेव और देवी पार्वती, फलों में देवी कात्यायनी, फूलों में गौरी और सम्पूर्ण भाग में लक्ष्मी का वास होगा।

इसके परिणामस्वरूप महादेव बहुत खुश हुए और देवी लक्ष्मी को वरदान देते समय यह कहा, “हे देवी! आज से जैसे तुम श्रीहरि की प्रिया हो, उसी तरीके से यह बेलपत्र मेरी सर्वप्रिय वस्तु बन जाएगी। यह कभी अशुद्ध नहीं होगी और इसमें विष को नष्ट करने की शक्ति भी होगी। जो भी देवता या मनुष्य बिल्वपत्र से पंचाक्षर मंत्र ‘ओम नमः शिवाय’ का उच्चारण करके बिल्वपत्र तोड़कर शिवलिंग पर सच्चे हृदय से अर्पित करेंगे या बिल्ववृक्ष की जड़ से मिट्टी लेकर पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजा करेंगे, उसकी मनोकामनाएं सफल होंगी। जिस घर में बेल का वृक्ष होगा, उस घर के प्राणी की कभी अकाल मृत्यु नहीं होगी। उस घर में लक्ष्मी और सुख-सौभाग्य सदैव बने रहेंगे। अगर किसी पार्थिव शरीर पर इस वृक्ष की छाया पड़ेगी तो उस व्यक्ति की आत्मा वैकुण्ठ और शिवलोक में निवास करेगी।”

इस तरीके से महादेव के वरदान के परिणामस्वरूप, तब से बेलपत्र की महिमा समस्त संसार में प्रस्तुत हो गई। पहले देवी-देवताएं, सप्तऋषियाँ, उसके बाद ऋषि-मुनियाँ, और इसके बाद कलयुग में मनुष्य बेलपत्र का पूजा करके महादेव के प्रति अपनी इच्छाएं प्राप्त करने की प्रक्रिया को अवलोकन करते हैं।

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