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Chardham Yatra 2024: Gangotri Dham के कपाट शीतकाल के लिए कब होंगे बंद? 

Chardham Yatra 2024: Gangotri Dham के कपाट शीतकाल के लिए दो नवंबर को 12:14 पर अभिजीत मुहूर्त में बंद कर दिए जाएंगे। उस दिन डोली Gangotri Dham से प्रस्थान कर रात्रि विश्राम के लिए भगवती मंदिर मार्कंडेय के पास निवास करेगी। तीन नवंबर को मां भगवती गंगे की डोली मुखवा में शीतकालीन प्रवास में विराजमान हो जाएगी। तत्पश्चात मुखवा में मां गंगा के दर्शन सुलभ होंगे।

Chardham Yatra 2024: साधु-संतों का गंगा स्नान और ध्यान पूजन

गुजरात के स्वामी नारायण गुरुकुल राजकोट से संत स्वामी के नेतृत्व में 60 साधु संतों का समूह उत्तराखंड के Chardham की यात्रा पर है। मंगलवार को साधु संतों ने डुंडा के पास गंगा स्नान के साथ ही ध्यान और पूजन किया।

संत स्वामी ने कहा कि यमुनोत्री में श्रद्धालुओं ने भारी मात्रा में वस्त्र यमुना में भेंट किए जा रहे हैं, जो एक गलत परंपरा है। सनातन धर्म में नदियों में वस्त्र बहाने की कोई व्यवस्था नहीं है। साधुओं के समूह में आए स्वामी वेदांत स्वरूप ने कहा कि देश की तमाम नदियां, खासकर मां गंगा और मां यमुना, भगवान की कृतियां हैं। इन मां समान नदियों को गंदा करने का अर्थ है कि हम भगवान को मैला कर रहे हैं।

नदियों को वस्त्र और प्लास्टिक न भेंट करें

सनातन धर्म के सभी भक्तजनों को किसी भी धाम की यात्रा में जाने पर नदियों को किसी भी तरह का वस्त्र, प्लास्टिक की बनी चीजें और श्रृंगार भेंट नहीं करना चाहिए। गंगा विचार मंच के प्रान्त संयोजक लोकेंद्र सिंह बिष्ट ने गुजरात से आए साधु संतों का स्वागत किया।

इस दौरान उन्होंने बताया कि सभी संतों की एक राय है कि मां गंगा, मां यमुना या देश की किसी भी नदी में वस्त्र एवं श्रृंगार का सामान जलधारा में नहीं भेंट करना चाहिए।

नागणी देवी में हेलीपैड और धर्मशाला

नवरात्रि में मां नागणी देवी के दर्शन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। खड़ी चढ़ाई पार कर नागणी देवी पहुंचने पर श्रद्धालु और उत्साह से भर रहे हैं। मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं की ओर से हेलीपैड और धर्मशाला का भी निर्माण किया गया है।

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प्रकृति रूप से बेहद ही सुंदर स्थल तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग और कुछ अन्य पर्यटक सुविधाओं की मांग श्रद्धालुओं ने की। समुद्र तल से लगभग 9000 फीट की ऊंचाई पर बालखिल्य पर्वत पर मां नागणी देवी मंदिर स्थित है।

उत्तरकाशी मुख्यालय से 18 किलोमीटर दूर संकुर्णाधार से चार किलोमीटर का पैदल मार्ग बेहद रोमांचक है। घने बांज बुरांश के जंगल से होकर नागणी देवी मंदिर तक पहुंचने वाले मार्ग पर वन्यजीवों का भी दीदार होता है।

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Maa Vaishno Devi के श्रद्धालुओं के लिए खुशखबरी

श्राइन बोर्ड के कर्मचारियों और भवन के आसपास तैनात संबद्ध एजेंसियों के लिए बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के प्रयास में, Shree Maa Vaishno Devi श्राइन बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अंशुल गर्ग ने भवन पर प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि केंद्र का उद्घाटन किया है।

Maa Vaishno Devi: सस्ती और गुणवत्तापूर्ण दवाएं

इस नए केंद्र में सस्ती गुणवत्ता वाली दवाएं और बेहतर स्वास्थ्य देखभाल उपलब्ध होगी। इस पहल से हर साल तीर्थस्थल पर आने वाले लाखों तीर्थयात्रियों और क्षेत्र के अधिकारियों को सस्ती जेनेरिक दवाओं, चिकित्सा उपकरणों और आवश्यक स्वास्थ्य देखभाल उत्पादों तक आसानी से पहुंच मिलेगी।

चिकित्सा सुविधा की उपलब्धता

सीईओ ने तीर्थयात्रा मार्ग पर स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के बोर्ड के प्रयास की पुष्टि की, ताकि तीर्थयात्री आध्यात्मिक संतोष के साथ-साथ आवश्यकता पड़ने पर सस्ती चिकित्सा देखभाल भी प्राप्त कर सकें। उन्होंने बताया कि सस्ती स्वास्थ्य सेवा तीर्थयात्रा का एक महत्वपूर्ण पहलू है और बोर्ड इस सेवा को प्रदान करने पर गर्व महसूस करता है।

शिक्षा और कल्याण कार्यक्रमों का विस्तार

अंशुल गर्ग ने बताया कि Shree Mata Vaishno Devi श्राइन बोर्ड समाज के समग्र कल्याण के लिए धार्मिक पहलुओं से परे सेवाएं प्रदान करने के अपने मिशन को दोहराता है। उन्होंने आश्वासन दिया कि बोर्ड विश्वस्तरीय सुविधाएं प्रदान करने और स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और कल्याण कार्यक्रमों का विस्तार करने के प्रयास जारी रखेगा।

चिकित्सा इकाइयों की सुविधा

तीर्थयात्रियों की चिकित्सा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बोर्ड द्वारा विभिन्न आधुनिक चिकित्सा उपकरणों से युक्त सात कार्यात्मक चिकित्सा इकाइयां चलाई जा रही हैं, जो चौबीसों घंटे आपात स्थिति में मदद के लिए उपलब्ध हैं। विशेष चिकित्सा देखभाल के लिए मरीजों को तत्काल अस्पताल में स्थानांतरित करने के लिए स्टैंडबाय एंबुलेंस भी उपलब्ध हैं। इसके अलावा, कटड़ा में सामुदायिक अस्पताल और कटड़ा से लगभग नौ किलोमीटर दूर Shree Mata Vaishno Devi श्राइन बोर्ड का 300 बिस्तरों वाला अस्पताल भी तीर्थयात्रियों की सभी चिकित्सा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए तैयार है।

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दुर्लभ दर्शन केंद्र का अनावरण

इसके अलावा, सीईओ ने भवन पर दुर्लभ दर्शन केंद्र का भी अनावरण किया, जो टेकएक्सआर इनोवेशन प्राइवेट लिमिटेड के साथ सहयोगात्मक पहल है। यह केंद्र शारदीय नवरात्र के दौरान तीर्थयात्रियों को संपूर्ण Shree Mata Vaishno Devi तीर्थयात्रा का 11 मिनट का आभासी वास्तविकता अनुभव प्रदान करता है।

वीआर हेडसेट का उपयोग करके भक्त बिना पूरे मार्ग, आरती और पवित्र पिंडियों के दर्शन करते हुए इस पवित्र यात्रा का अनुभव कर रहे हैं। यह नई तकनीक भक्तों के लिए एक वास्तविक और गहन आध्यात्मिक अनुभव प्रदान कर तीर्थयात्रा के अनुभव को और भी समृद्ध बनाती है।

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Triyuginarayan Temple: भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह त्रियुगीनारायण मंदिर में हुआ था, जानिए यहां कैसे पहुंचे

कहा जाता है देवों के देव महादेव की पूजा सच्चे मन से करने पर हर मनोकामना पूरी होती है। माना जाता है कि भगवान शिव और मां पार्वती की शादी त्रियुगीनारायण मंदिर (Triyuginarayan temple) में हुई थी। ये मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में है। ये मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। ये मंदिर केदारनाथ के समान दिखता है। अगर आप भी इस मंदिर में जाना चाहते हैं तो जानिए यहां कैसे पहुंचे-

Triyuginarayan Temple: जानिए यहां कैसे पहुंचे

फ्लाइट से

जॉली ग्रांट हवाई अड्डा त्रियुगी नारायण गांव का सबसे पास हवाई अड्डा है। ये हवाई अड्डा दिल्ली से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। ये हवाई अड्डा सड़कों द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। जॉली ग्रांट हवाई अड्डे से गुप्तकाशी, फिर त्रिजुगीनारायण गांव के लिए टैक्सियां मिलती हैं

ट्रेन से

Triyuginarayan का सबसे पास रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। यहां से त्रियुगीनारायण 219 किमी दूर है। ऋषिकेश से गुप्तकाशी और फिर त्रियुगीनारायण के लिए टैक्सियां और बसें आसानी से मिल जाती हैं।

सड़क द्वारा

Triyuginarayan temple पहुंचने के लिए अपनी यात्रा हरिद्वार से शुरू करें। हरिद्वार से रुद्रप्रयाग 165 किलोमीटर दूर है ऐसे में यहां से टैक्सी या बस ले सकते हैं। सड़क की स्थिति और यातायात के आधार पर आपको लगभग 6-7 घंटे लग सकते हैं। फिर रुद्रप्रयाग से सोनप्रयाग तक पहुंचने के लिए टैक्सी किराए पर लें या स्थानीय बस लें, जो लगभग 70 किलोमीटर दूर है। फिर सोनप्रयाग से त्रियुगीनारायण मंदिर लगभग 5 किलोमीटर की दूर है। आप डायरेक्ट कैब से यहां जा सकते हैं। आप हरिद्वार के अलावा दिल्ली से भी डायरेक्ट इस मंदिर तक पहुंच सकते हैं।

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जाने का सही समय

रुद्रप्रयाग में त्रियुगीनारायण मंदिर की यात्रा का सबसे अच्छा समय गर्मियों के मौसम की शुरुआत के दौरान होता है। अप्रैल से जून की गर्मियों के महीने जब तापमान 20 डिग्री सेल्सियस और 36 डिग्री सेल्सियस के बीच गिर जाता है। तब यहां तीर्थयात्रा के लिए सबसे अच्छा समय माना जाता है।

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Sarv Pitru Amavasya : सर्वपितृ अमावस्या के अवसर पर श्राद्धकर्म करते हुए आनंदपूर्वक पितरों को विदा करें, जिससे आपके जीवन में सुख-समृद्धि और भाग्योदय की संभावनाएँ प्रबल हो सकें।

Sarv Pitru Amavasya Pujan Vidhi : जिन लोगों के पूर्वजों या माता-पिता का देहावसान अमावस्या के दिन हुआ हो, या यदि किसी को अपने दिवंगत परिजन के निधन की तिथि ज्ञात नहीं होती, उनका श्राद्ध सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या के दिन किया जाता है। इस दिन विशेष रूप से उन पितरों का तर्पण और श्रद्धांजलि दी जाती है, जिनकी मृत्यु की सही तिथि मालूम नहीं होती, ताकि उनकी आत्मा को शांति मिले और उनके आशीर्वाद से परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहे।

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या की संध्या को समस्त पितृगण अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान करने लगते हैं। मान्यता है कि पितृगण सूर्य और चन्द्रमा की किरणों के सहारे अपने लोक की ओर वापस जाते हैं, और इस यात्रा में उनके वंशजों द्वारा जलाए गए दीपों की रोशनी से उन्हें मार्गदर्शन मिलता है। दीपों की इस रोशनी से पितृगण संतुष्ट होकर घर-परिवार को सुख-शांति और समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं, जिससे भाग्य में आने वाली बाधाएं समाप्त हो जाती हैं। इसलिए पितृ विसर्जनी अमावस्या के दिन, संध्या समय पितरों को भोग अर्पित कर, घर की दहलीज पर दीपक जलाकर प्रार्थना करनी चाहिए कि, “हे पितृदेव! यदि हमसे जाने-अनजाने में कोई भूल-चूक हुई हो, तो कृपया उसे क्षमा करें और हमें आशीर्वाद दें कि हम अपने जीवन को सुख-शांति और समृद्धि से भर सकें।”

विधि-विधान पितृ विसर्जनी अमावस्या के दिन मध्यान्ह में स्नान करके सभी पितरों का श्राद्ध और तर्पण करना चाहिए। इस दिन पितरों के लिए ब्राह्मण भोजन का विशेष महत्व होता है। मान्यताओं के अनुसार, विसर्जन के समय पिता, पितामह, प्रपितामह, माता और अन्य पितरों का तर्पण करने का विधान है। इस दिन पितृवंश, मातृवंश, गुरुवंश, श्वसुर वंश और मित्रों के पितरों का भी श्राद्ध किया जा सकता है। गोधूलि बेला में पवित्र नदियों के किनारे जाकर पितरों के लिए दीपदान करना आवश्यक माना गया है। यदि नगर में नदी उपलब्ध न हो, तो पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलाकर पितरों की पूजा की जा सकती है। दक्षिण दिशा की ओर दीपकों की लौ रखते हुए सोलह दीपक जलाने का विधान है, जो पितरों के आशीर्वाद और शांति के प्रतीक होते हैं।

इन दीपकों के पास पूरी, मिठाई, चावल और दक्षिणा रखकर, दोनों हाथ ऊपर कर दक्षिण दिशा की ओर पितरों को विदा किया जाता है। श्वेत रंग के पुष्प अर्पित करते हुए, पितरों को एक वर्ष के लिए विदा किया जाता है। शास्त्रों में कहा गया है, “पितरं प्रीतिमापन्ने प्रीयन्ते सर्वदेवता,” अर्थात् पितरों के प्रसन्न रहने पर ही सभी देवता प्रसन्न होते हैं। तभी मनुष्य के सभी जप, तप, पूजा-पाठ, अनुष्ठान और मंत्र साधना सफल होती हैं, अन्यथा उनका कोई लाभ नहीं होता।

श्राद्ध प्रकाश और यम स्मृति में कहा गया है, “आयुः प्रजां धनं विद्य्नां, स्वर्गम् मोक्षं सुखानि च प्रयच्छन्ति तथा राज्यं पितरः श्राद्ध तर्पिताः।” अर्थात् श्राद्ध से तृप्त पितर हमें आयु, संतान, धन, विद्या, स्वर्ग, मोक्ष, सुख और राज्य प्रदान करते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि पितरों की कृपा से सभी प्रकार की समृद्धि और सौभाग्य प्राप्त होते हैं

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शास्त्रों के अनुसार इंदिरा एकादशी के दिन मरने वालों को क्यों रहना पड़ता है भूखा?

शास्त्रों के अनुसार इंदिरा एकादशी 28 सितंबर को है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और पितरों का श्राद्ध करने का विधान है। लेकिन क्या आप जानते हैं इस दिन स्वर्ग लोक जाने वाली आत्माओं का एक रहस्य? आइए जानते हैं कि आखिर क्यों स्वर्ग में भी रहना पड़ता है भूखा?

पितृ पक्ष है, जिसमें दान, तर्पण और श्राद्ध कर्म करने का विधान है। शास्त्रों और पुराणों के अनुसार, पितृ पक्ष में पितृ नाम का श्राद्ध करने से पितृ दोष से छुटकारा मिलता है। गुरु पुराण कहता है कि अगर कोई व्यक्ति एकादशी के दिन मर जाता है, तो उसकी आत्मा सीधे स्वर्ग में जाती है और जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाती है। लेकिन उस आत्मा को एकादशी के दिन मरने पर स्वर्ग में भूखा रहना पड़ता है। आइए पता चलेगा, ऐसा क्यों होता है

परिजनों के बीच भटकती है आत्मा

गरुड़ पुराण सहित अन्य पुराणों में बताया गया है कि जब कोई व्यक्ति मरता है, तो यमदूत उसकी आत्मा को यमलोक ले जाते हैं, जहां उसके पाप और पुण्य का हिसाब किया जाता है। 24 घंटे बाद आत्मा को उसके घर वापस भेजा जाता है। मृतक की आत्मा यमदूतों द्वारा छोड़ दी जाती है और वह अपने परिजनों को पुकारती है, लेकिन उसे कोई सुन नहीं पाता। आत्मा अपने परिजनों को रोते हुए देखकर फिर से अपने शरीर में लौटने की कोशिश करती है, लेकिन यमदूतों के बंधन में जकड़ी रहती है।

इसलिए एकादशी के दिन आत्मा को रहना पड़ता है भूखा

जिस व्यक्ति की मृत्यु एकादशी के दिन होती है, वह सीधे स्वर्ग पहुंचता है, लेकिन उसे इस दिन भूखा रहना पड़ता है। गरुड़ पुराण और अन्य पुराणों के अनुसार, एकादशी के दिन आत्मा को इसलिए भूखा रहना पड़ता है क्योंकि इस दिन स्वर्ग सहित सभी स्थानों पर भंडारा बंद रहता है। स्वर्ग में सभी एकादशी का व्रत रखते हैं। व्यक्ति के पाप और पुण्य का हिसाब तो किया जाता है, लेकिन उसे भोजन नहीं मिलता। बैकुंठ में भी यही स्थिति होती है, जहां भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और वहां के सभी निवासी एकादशी का व्रत रखते हैं, इसलिए वहां भी भंडारा बंद रहता है।

इंदिरा एकादशी का महत्व

पितृ पक्ष में पड़ने वाली इंदिरा एकादशी का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा के साथ-साथ पितरों का श्राद्ध करना चाहिए। ऐसा करने से पितर प्रसन्न होते हैं और परिवार में सुख-शांति आती है। मान्यता है कि इंदिरा एकादशी का व्रत सात पीढ़ियों के पितरों को तृप्त करता है।

जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है व्यक्ति

गीता में बताया गया है कि माह के तीस दिनों को चंद्रमा के घटने और बढ़ने के आधार पर दो भागों में बांटा गया है – शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। शुक्ल पक्ष में 15 दिन होते हैं जब चंद्रमा बढ़ता है, जबकि कृष्ण पक्ष में 15 दिन होते हैं जब चंद्रमा घटता है। शुक्ल पक्ष का अंतिम दिन पूर्णिमा तिथि कहलाता है और कृष्ण पक्ष का अंतिम दिन अमावस्या तिथि कहलाता है। शास्त्रों के अनुसार, शुक्ल पक्ष के 15 दिन देवताओं के दिन माने जाते हैं, जबकि कृष्ण पक्ष के 15 दिन पितरों के दिन माने जाते हैं। देवताओं के दिनों को उत्तरायण और पितरों के दिनों को दक्षिणायन काल कहा गया है। गीता में यह भी बताया गया है कि जिनकी मृत्यु देवताओं के काल यानी शुक्ल पक्ष में होती है, वे जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाते हैं, जबकि जिनकी मृत्यु पितरों के काल यानी कृष्ण पक्ष में होती है, उन्हें फिर से पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ता है

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Jitiya Vrat 2024: जितिया व्रत तिथि, मुहूर्त और पूजा विधि

Jitiya Vrat : जितिया व्रत कब है, यह सवाल हर साल महिलाओं के मन में उठता है। इस साल जितिया व्रत का नहाय-खाय 22 सितंबर और पारण 25 सितंबर को है।आइए जानते हैं जितिया व्रत से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारी विस्तार से।

जितिया व्रत, जिसे जीवितपुत्रिका व्रत भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में माताओं का एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत अपनी संतान की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए किया जाता है। मान्यता है कि भविष्य पुराण के अनुसार इस व्रत को करने से संतान की आयु लंबी होती है।

यह व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी वृद्धा अष्टमी से शुरू होता है और नवमी तिथि को पारण किया जाता है। इस व्रत में भगवान जीमूतवाहन की पूजा की जाती है। यह व्रत काफी कठिन होता है क्योंकि व्रती महिलाएं 36 घंटे तक निराहार रहती हैं।

इस साल जितिया व्रत की तिथि को लेकर कुछ उलझन है। पंचांग के अनुसार, कभी-कभी सप्तमी और अष्टमी तिथि दोनों को ही वृद्धा अष्टमी कहा जाता है। इसलिए, सटीक तिथि जानने के लिए स्थानीय पंडित या पंचांग का सहारा लेना बेहतर होगा।

जितिया नहाय खाय कब है

जितिया व्रत की शुरुआत नहाय-खाय से होती है जो इस साल 23 सितंबर को है। इस पवित्र दिन, माताएं नदी या तालाब में स्नान करके अपनी संतान के सुख और समृद्धि के लिए भगवान जीमूतवाहन की पूजा करती हैं। तेल और झिमनी के पत्तों का विशेष महत्व है, जिन्हें संतान के माथे पर लगाकर आशीर्वाद दिया जाता है।

जितिया ओठगन कब है

जितिया व्रत का ओठन एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। इस साल, शास्त्रों के अनुसार, 24 तारीख को सूर्योदय से 2 घंटे पहले ओठन करना शुभ माना जाता है। ओठन के समय, व्रती महिलाएं चूड़ा दही या अपनी पसंद का कोई अन्य भोजन ग्रहण करती हैं। एक विशेष परंपरा के अनुसार, वे दरवाजे से शरीर को टिकाकर पानी पीती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस प्रक्रिया से न केवल उनकी संतान बल्कि उनके भाइयों को भी दीर्घायु का वरदान प्राप्त होता है।

ओठन के बाद से ही व्रती महिलाओं का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है। यह व्रत अगले दिन पारण के समय तक जारी रहता है।

जितिया व्रत की तारीख

आपने बिल्कुल सही कहा है। इस वर्ष पंचांग के अनुसार, 24 तारीख की दोपहर बाद से अष्टमी तिथि लग रही है। चूंकि जितिया व्रत सप्तमी वृद्धा अष्टमी पर किया जाता है, इसलिए इस बार व्रत की शुरुआत 24 तारीख की सुबह से ही मान ली जाएगी। और जब अष्टमी तिथि का समापन होगा, यानी 25 तारीख को जितिया व्रत का पारण किया जाएगा।

जितिया व्रत का पारण

आपने बिल्कुल सही कहा है। इस वर्ष जितिया व्रत का पारण 25 तारीख को शाम 5 बजकर 25 मिनट पर होगा। इसी समय व्रती महिलाओं को दातुन लेना चाहिए। इसके बाद स्नान करके पूजा-पाठ करना चाहिए और फिर अन्न-जल ग्रहण करना चाहिए

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Mahakumbh 2025: पावर कट से मुक्त होगा प्रयागराज महाकुंभ

Mahakumbh 2025: महाकुंभ मेले के दौरान एक सेकेंड के लिए भी बिजली न गुल हो, इसके लिए 2004 हाइब्रिड सोलर लाइटें लगाई जाएंगी। ये लाइटें मेला क्षेत्र को पावर कट से मुक्त रखेंगी। अगर किसी तकनीकी खराबी की वजह से किसी उपकेंद्र की आपूर्ति बाधित होती है, तो यह हाइब्रिड सोलर लाइटें तुरंत व्यवस्था संभाल लेंगी। महाकुंभ मेला 4000 हेक्टेयर क्षेत्र में फैलेगा।

Mahakumbh 2025: बिजली परियोजना में 391 करोड़ रुपये का निवेश

पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड इस परियोजना पर 391.04 करोड़ रुपये की लागत से काम कर रहा है। मेला क्षेत्र में 1543 किमी लंबी बिजली लाइन बिछाई जा रही है। साथ ही, शिविरों में रहने वाले 4.71 लाख लोगों को बिजली के कनेक्शन दिए जाएंगे। इसके अलावा, मेला क्षेत्र में 67,000 स्ट्रीट लाइटें भी लगाई जाएंगी ताकि पूरे क्षेत्र में रोशनी का पर्याप्त इंतजाम हो।

170 सब स्टेशन और 5 करोड़ यूनिट बिजली की जरूरत

Mahakumbh मेले के लिए 85 बिजली घर बनाए जाएंगे, जिनमें हर बिजली घर में उच्च क्षमता वाले दो ट्रांसफार्मर लगाए जाएंगे। इसके साथ ही, 400 केवी के 170 सब स्टेशन बनाए जाएंगे। अखाड़ों को अलग से बिजली आपूर्ति के लिए विशेष ट्रांसफार्मर लगाए जाएंगे। अनुमान है कि पूरे मेले के दौरान लगभग पांच करोड़ यूनिट बिजली की जरूरत होगी।

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अक्टूबर से शुरू होगा काम

बिजली विभाग के मुख्य अभियंता प्रमोद कुमार सिंह ने बताया कि महाकुंभ मेला क्षेत्र में बिजली की व्यवस्था का काम एक अक्टूबर से शुरू किया जाएगा। महाकुंभ को पावर कट से मुक्त रखने के लिए हाइब्रिड सोलर लाइटें लगाई जाएंगी, जिससे मेला क्षेत्र में किसी भी प्रकार की बिजली बाधा न आए।

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22 सितंबर: सूर्य देव की कृपा से ये 5 राशियां हुईं मालामाल! रवि योग के शुभ प्रभाव से इन जातकों के जीवन में आएगी खुशियों की बाढ़

कल, 22 सितंबर को कई शुभ योग बन रहे हैं, जिनमें हर्षण योग और रवि योग भी शामिल हैं। ये योग कन्या, तुला, कुंभ सहित 5 अन्य राशियों के लिए विशेष लाभ लेकर आएंगे। सूर्य देव की कृपा से इन राशियों के जातकों का दिन शुभ रहेगा। सूर्य देव की कृपा से इन राशियों के जातकों को कारोबार, नौकरी और पारिवारिक जीवन में सफलता मिल सकती है।

रविवार का दिन है खास! 22 सितंबर को बन रहे हर्षण योग, रवि योग और कृतिका नक्षत्र का संयोग कुछ खास राशियों के लिए बेहद शुभ साबित होने वाला है। इस दिन चंद्रमा वृषभ राशि में संचार कर रहा है जो संपत्ति से जुड़े मामलों के लिए अच्छा संकेत है। कन्या, तुला, कुंभ सहित 5 राशियों के लिए तो यह दिन सोने के अंडे देने वाली मुर्गी साबित हो सकता है। इन राशियों के जातकों को अचानक धन लाभ, संपत्ति खरीदने में सफलता मिल सकती है। साथ ही इनकी किस्मत चमकने वाली है। सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए कुछ सरल उपायों को अपनाकर आप अपने जीवन में खुशहाली ला सकते हैं।

मेष राशि वालों के लिए कैसा रहेगा 22 सितंबर का दिन

मेष राशि वालों के लिए रविवार का दिन है खास! आज आपकी व्यक्तित्व में चार चांद लगेंगे और आपके आसपास का माहौल भी खुशनुमा रहेगा। सूर्य देव की कृपा से धन लाभ के नए रास्ते खुलेंगे और आपकी आमदनी में बढ़ोतरी होगी। भाइयों का सहयोग मिलने से पारिवारिक व्यापार में तरक्की होगी। नौकरीपेशा लोगों के लिए दिन आरामदायक रहेगा और नए अवसर भी मिल सकते हैं। परिवार के साथ समय बिताने और बच्चों के भविष्य के बारे में सोचने का दिन है। और उनके साथ कहीं बाहर घूमने जाने की योजना भी बनाएंगे।

मेष राशि वालों के लिए रविवार के दिन का उपाय : रविवार को तांबे का एक सिक्का बहते पानी में प्रवाहित करें। मन में कोई भी मनोकामना लेकर करें, आपकी मनोकामना पूरी होगी।

कर्क राशि वालों के लिए कैसा रहेगा 22 सितंबर का दिन :

कर्क राशि वालों के लिए कल का दिन बेहद खास है! सामाजिक और धार्मिक कार्यों में आपका मन लगेगा। किसी शुभ कार्य में शामिल होने का मौका मिलेगा। घर में शांति और सुख का वातावरण रहेगा। जो लोग किराए के मकान में रहते हैं उन्हें अपने घर का सपना पूरा होता दिखाई देगा। व्यापारी वर्ग के लिए दिन लाभदायक रहेगा।जिससे व्यापार में बंपर लाभ होगा।ससुराल पक्ष से सहयोग मिलेगा और माता-पिता का आशीर्वाद आपके लिए वरदान साबित होगा।

कर्क राशि वालों के लिए रविवार के दिन का उपाय : रविवार को सूर्य देव को जल अर्पित करते समय चावल, लाल मिर्च के कुछ दाने और लाल फूल मिलाएं। इससे नौकरी और व्यापार में उन्नति होगी।

कन्या राशि वालों के लिए कैसा रहेगा 22 सितंबर का दिन:

कन्या राशि वालों के लिए कल का दिन बेहद शुभ है! अधूरे काम पूरे होंगे और शुभ समाचार मिलने की संभावना है। भाग्य का साथ मिलेगा और आपका स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। व्यापार में लाभ होगा और पारिवारिक जीवन सुखमय रहेगा। भाई-बहनों का सहयोग मिलेगा और भाग्य का साथ मिलने से कल आपके आसपास का माहौल अच्छा रहेगा, जिससे आपके मन में कई सकारात्मक विचार आएंगे और आपका स्वास्थ्य भी अच्छी रहने वाला है। अगर आप पार्टनरशिप में बिजनस कर रहे हैं तो कल आपको अच्छा लाभ होगा और पार्टनर के साथ आपके संबंध भी अच्छे रहेंगे। वैवाहिक जीवन में अगर कोई अनबन चल रही है तो कल वह खत्म हो जाएगी और पति-पत्नी के बीच आपसी तालमेल और भी बेहतर होता जाएगा। भाई-बहनों का सहयोग हर कदम पर मिलता रहेगा और परिवार में सुख-शांति बनी रहेगी। दोस्तों से मुलाकात होगी।

कन्या राशि वालों के लिए रविवार के दिन का उपाय : अपनी मनोकामना बरगद के पत्ते पर लिखकर बहते पानी में प्रवाहित करें।

तुला राशि वालों के लिए कैसा रहेगा 22 सितंबर का दिन :

तुला राशि वालों के लिए कल का दिन बेहद शुभ है! भाग्य का साथ मिलेगा और आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी। छात्रों की पढ़ाई में मन लगेगा। मान-सम्मान में वृद्धि होगी और प्रतिष्ठित लोगों से मुलाकात होगी। व्यापार में नई योजनाएं सफल होंगी। धन लाभ होगा और फिजूलखर्ची कम होगी। परिवार में सुख-शांति रहेगी और जीवनसाथी के साथ संबंध मधुर होंगे।

तुला राशि वालों के लिए रविवार के दिन का उपाय : सूर्य देव को गुड़-घी अर्पित कर सूर्य चालीसा का पाठ करें। इससे धन संबंधी समस्याएं दूर होंगी।

कुंभ राशि वालों के लिए कैसा रहेगा 22 सितंबर का दिन :

कुंभ राशि वालों के लिए कल का दिन बेहद खास है! पूरे दिन मौज-मस्ती होगी और दोस्तों के साथ अच्छा समय बिताएंगे। सेहत अच्छी रहेगी और ऊर्जा से भरपूर रहेंगे। यात्रा का योग बन रहा है और पैसों की समस्या दूर होगी। व्यापार में लाभ होगा और घर का वातावरण खुशनुमा रहेगा। लव लाइफ में नया मोड़ आ सकता है। दोस्तों से मिलने वाली जानकारी आपके लिए फायदेमंद साबित होगी।

कुंभ राशि वालों के लिए रविवार के दिन का उपाय :रविवार को सूर्यदेव को जल चढ़ाएं, आदित्य स्तोत्र का पाठ करें और नमक रहित भोजन करें।

नोट : यह जानकारी जनता के हित में दी जा रही है। ज्योतिष और धर्म से जुड़े ये उपाय और सलाहें आपकी आस्था और विश्वास पर आधारित हैं। हम इनके परिणामों के बारे में कोई दावा नहीं करते हैं

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Uttarakhand Tourism: हेलीकॉप्टर से आदि कैलाश व ओम पर्वत पर कर सकेंगे यात्रा

Uttarakhand Tourism: Uttarakhand पर्यटन विकास परिषद और कुमाऊं मंडल विकास निगम (केएमवीएन) द्वारा आयोजित आदि कैलास और ऊं पर्वत यात्रा की तैयारियां अंतिम चरण में पहुंच चुकी हैं। इस यात्रा को पायलट प्रोजेक्ट के तहत हेलीकॉप्टर द्वारा संचालित किया जा रहा है। हेली कंपनियों का चयन शुक्रवार को किया जाएगा।

Uttarakhand Tourism: यात्रा का खर्च और नियम

चार दिन की इस यात्रा पर प्रति यात्री 70-75 हजार रुपये का खर्च होगा। भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) और भारतीय सेना श्रद्धालुओं को चीन सीमा पर स्थित आदि कैलास और ऊं पर्वत के दर्शन कराएगी। भारत सरकार ने इस यात्रा के लिए 60 श्रद्धालुओं को अनुमति दी है।

यात्रा की शुरुआत और पात्रता

यात्रा की शुरुआत 25 सितंबर से होने की उम्मीद है। 55 वर्ष से अधिक आयु के लोग इस यात्रा में हिस्सा नहीं ले सकेंगे। पिछले साल अक्टूबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आदि कैलास यात्रा के बाद पिथौरागढ़ जिले के उच्च हिमालयी क्षेत्र में पर्यटन में वृद्धि देखी गई है। इस साल अब तक 20,000 से अधिक यात्रा परमिट जारी किए जा चुके हैं।

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हेलीकॉप्टर से यात्रा की योजना

उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद ने इस यात्रा को हेलीकॉप्टर द्वारा संचालित करने की योजना बनाई है। सरकार से अनुमति मिलने के बाद यात्रा कार्यक्रम को अंतिम रूप दिया जा रहा है।

बुकिंग और ठहरने की व्यवस्था

केएमवीएन के जीएम विजय नाथ शुक्ल ने बताया कि यात्रा के लिए निगम की वेबसाइट और देशभर में स्थित जनसंपर्क कार्यालयों में मैनुअल बुकिंग की जा रही है। यात्रियों के ठहरने की व्यवस्था निगम द्वारा की जाएगी। श्रद्धालुओं को यात्रा से एक दिन पहले पिथौरागढ़ पहुंचना होगा। हर दल में 15 श्रद्धालु शामिल होंगे।

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Pitru Paksha 2024 Diye ka Upay पितृ पक्ष में रोजाना इन 5 पवित्र स्थानों पर दीपक जलाकर आप न केवल अपने पितरों को प्रसन्न कर सकते हैं बल्कि मां लक्ष्मी का भी आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।

Pitru Paksha 2024 Diye ka Upay : आज आश्विन मास की प्रतिपदा तिथि से पितृ पक्ष का आरंभ हो गया है। इन पंद्रह दिनों में हम अपने पूर्वजों को याद करते हुए श्राद्ध करते हैं। मान्यता है कि इस दौरान हमारे पितर धरती पर आते हैं और हमें आशीर्वाद देते हैं। अगर हम रोजाना घर के इन चार स्थानों पर दीपक जलाएं तो न सिर्फ पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है, बल्कि मां लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं।

पितृ पक्ष में दीपक जलाकर आप अपने पूर्वजों को प्रसन्न कर सकते हैं और मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। आइए जानते हैं आपको रोजाना किन 4 जगहों पर दीपक जलाना है।

पितृ पक्ष में दक्षिण दिशा में सरसों के तेल का दीपक जलाना बहुत शुभ माना जाता है। क्योंकि दक्षिण दिशा पितरों की दिशा होती है और सरसों का तेल यमराज को समर्पित होता है। इससे पितर प्रसन्न होते हैं और पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।

पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाएं

पितृ पक्ष में रोजाना शाम को पीपल के पेड़ के नीचे काले तिल और सरसों के तेल का दीपक जलाने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है पीपल के पेड़ पर देवी-देवताओं का भी वास होता है, इसलिए पितृ पक्ष में रोजाना यहां दीपक जलाकर रखने से पूर्वजों का आशीर्वाद आपको मिलता है।और मां लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं

घर के मुख्य द्वार पर दीपक जलाएं

घर का मुख्य द्वार बहुत महत्वपूर्ण होता है। पितृ पक्ष में शाम को यहां दीपक जलाने से न सिर्फ पितरों का आशीर्वाद मिलता है, बल्कि मां लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं। मुख्य द्वार से मां लक्ष्‍मी का भी प्रवेश होता है। इससे घर में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।

पितरों की तस्‍वीर के नीचे दीपक जलाएं

पितृ पक्ष में अपने पूर्वजों की तस्वीर पर दीपक जलाना बहुत शुभ माना जाता है। इससे पितरों का आशीर्वाद मिलता है और घर में कभी धन की कमी नहीं होती।

ईशान कोण में भी जलाएं दीपक

पितृ पक्ष में ईशान कोण में घी का दीपक और किचन में सरसों का तेल का दीपक जलाने से मां लक्ष्मी और पितर दोनों प्रसन्न होते हैं। इससे घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है।इस उपाय को पूरे 15 दिन लगातार करने से आपके घर में सुख और सुविधाएं बढ़ने के साथ ही जीवन में सुकून शांति स्‍थापित होती है।

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