Categories
धर्म

Sarv Pitru Amavasya : सर्वपितृ अमावस्या के अवसर पर श्राद्धकर्म करते हुए आनंदपूर्वक पितरों को विदा करें, जिससे आपके जीवन में सुख-समृद्धि और भाग्योदय की संभावनाएँ प्रबल हो सकें।

Sarv Pitru Amavasya Pujan Vidhi : जिन लोगों के पूर्वजों या माता-पिता का देहावसान अमावस्या के दिन हुआ हो, या यदि किसी को अपने दिवंगत परिजन के निधन की तिथि ज्ञात नहीं होती, उनका श्राद्ध सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या के दिन किया जाता है। इस दिन विशेष रूप से उन पितरों का तर्पण और श्रद्धांजलि दी जाती है, जिनकी मृत्यु की सही तिथि मालूम नहीं होती, ताकि उनकी आत्मा को शांति मिले और उनके आशीर्वाद से परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहे।

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या की संध्या को समस्त पितृगण अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान करने लगते हैं। मान्यता है कि पितृगण सूर्य और चन्द्रमा की किरणों के सहारे अपने लोक की ओर वापस जाते हैं, और इस यात्रा में उनके वंशजों द्वारा जलाए गए दीपों की रोशनी से उन्हें मार्गदर्शन मिलता है। दीपों की इस रोशनी से पितृगण संतुष्ट होकर घर-परिवार को सुख-शांति और समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं, जिससे भाग्य में आने वाली बाधाएं समाप्त हो जाती हैं। इसलिए पितृ विसर्जनी अमावस्या के दिन, संध्या समय पितरों को भोग अर्पित कर, घर की दहलीज पर दीपक जलाकर प्रार्थना करनी चाहिए कि, “हे पितृदेव! यदि हमसे जाने-अनजाने में कोई भूल-चूक हुई हो, तो कृपया उसे क्षमा करें और हमें आशीर्वाद दें कि हम अपने जीवन को सुख-शांति और समृद्धि से भर सकें।”

विधि-विधान पितृ विसर्जनी अमावस्या के दिन मध्यान्ह में स्नान करके सभी पितरों का श्राद्ध और तर्पण करना चाहिए। इस दिन पितरों के लिए ब्राह्मण भोजन का विशेष महत्व होता है। मान्यताओं के अनुसार, विसर्जन के समय पिता, पितामह, प्रपितामह, माता और अन्य पितरों का तर्पण करने का विधान है। इस दिन पितृवंश, मातृवंश, गुरुवंश, श्वसुर वंश और मित्रों के पितरों का भी श्राद्ध किया जा सकता है। गोधूलि बेला में पवित्र नदियों के किनारे जाकर पितरों के लिए दीपदान करना आवश्यक माना गया है। यदि नगर में नदी उपलब्ध न हो, तो पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलाकर पितरों की पूजा की जा सकती है। दक्षिण दिशा की ओर दीपकों की लौ रखते हुए सोलह दीपक जलाने का विधान है, जो पितरों के आशीर्वाद और शांति के प्रतीक होते हैं।

इन दीपकों के पास पूरी, मिठाई, चावल और दक्षिणा रखकर, दोनों हाथ ऊपर कर दक्षिण दिशा की ओर पितरों को विदा किया जाता है। श्वेत रंग के पुष्प अर्पित करते हुए, पितरों को एक वर्ष के लिए विदा किया जाता है। शास्त्रों में कहा गया है, “पितरं प्रीतिमापन्ने प्रीयन्ते सर्वदेवता,” अर्थात् पितरों के प्रसन्न रहने पर ही सभी देवता प्रसन्न होते हैं। तभी मनुष्य के सभी जप, तप, पूजा-पाठ, अनुष्ठान और मंत्र साधना सफल होती हैं, अन्यथा उनका कोई लाभ नहीं होता।

श्राद्ध प्रकाश और यम स्मृति में कहा गया है, “आयुः प्रजां धनं विद्य्नां, स्वर्गम् मोक्षं सुखानि च प्रयच्छन्ति तथा राज्यं पितरः श्राद्ध तर्पिताः।” अर्थात् श्राद्ध से तृप्त पितर हमें आयु, संतान, धन, विद्या, स्वर्ग, मोक्ष, सुख और राज्य प्रदान करते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि पितरों की कृपा से सभी प्रकार की समृद्धि और सौभाग्य प्राप्त होते हैं

Categories
धर्म

शास्त्रों के अनुसार इंदिरा एकादशी के दिन मरने वालों को क्यों रहना पड़ता है भूखा?

शास्त्रों के अनुसार इंदिरा एकादशी 28 सितंबर को है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और पितरों का श्राद्ध करने का विधान है। लेकिन क्या आप जानते हैं इस दिन स्वर्ग लोक जाने वाली आत्माओं का एक रहस्य? आइए जानते हैं कि आखिर क्यों स्वर्ग में भी रहना पड़ता है भूखा?

पितृ पक्ष है, जिसमें दान, तर्पण और श्राद्ध कर्म करने का विधान है। शास्त्रों और पुराणों के अनुसार, पितृ पक्ष में पितृ नाम का श्राद्ध करने से पितृ दोष से छुटकारा मिलता है। गुरु पुराण कहता है कि अगर कोई व्यक्ति एकादशी के दिन मर जाता है, तो उसकी आत्मा सीधे स्वर्ग में जाती है और जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाती है। लेकिन उस आत्मा को एकादशी के दिन मरने पर स्वर्ग में भूखा रहना पड़ता है। आइए पता चलेगा, ऐसा क्यों होता है

परिजनों के बीच भटकती है आत्मा

गरुड़ पुराण सहित अन्य पुराणों में बताया गया है कि जब कोई व्यक्ति मरता है, तो यमदूत उसकी आत्मा को यमलोक ले जाते हैं, जहां उसके पाप और पुण्य का हिसाब किया जाता है। 24 घंटे बाद आत्मा को उसके घर वापस भेजा जाता है। मृतक की आत्मा यमदूतों द्वारा छोड़ दी जाती है और वह अपने परिजनों को पुकारती है, लेकिन उसे कोई सुन नहीं पाता। आत्मा अपने परिजनों को रोते हुए देखकर फिर से अपने शरीर में लौटने की कोशिश करती है, लेकिन यमदूतों के बंधन में जकड़ी रहती है।

इसलिए एकादशी के दिन आत्मा को रहना पड़ता है भूखा

जिस व्यक्ति की मृत्यु एकादशी के दिन होती है, वह सीधे स्वर्ग पहुंचता है, लेकिन उसे इस दिन भूखा रहना पड़ता है। गरुड़ पुराण और अन्य पुराणों के अनुसार, एकादशी के दिन आत्मा को इसलिए भूखा रहना पड़ता है क्योंकि इस दिन स्वर्ग सहित सभी स्थानों पर भंडारा बंद रहता है। स्वर्ग में सभी एकादशी का व्रत रखते हैं। व्यक्ति के पाप और पुण्य का हिसाब तो किया जाता है, लेकिन उसे भोजन नहीं मिलता। बैकुंठ में भी यही स्थिति होती है, जहां भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और वहां के सभी निवासी एकादशी का व्रत रखते हैं, इसलिए वहां भी भंडारा बंद रहता है।

इंदिरा एकादशी का महत्व

पितृ पक्ष में पड़ने वाली इंदिरा एकादशी का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा के साथ-साथ पितरों का श्राद्ध करना चाहिए। ऐसा करने से पितर प्रसन्न होते हैं और परिवार में सुख-शांति आती है। मान्यता है कि इंदिरा एकादशी का व्रत सात पीढ़ियों के पितरों को तृप्त करता है।

जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है व्यक्ति

गीता में बताया गया है कि माह के तीस दिनों को चंद्रमा के घटने और बढ़ने के आधार पर दो भागों में बांटा गया है – शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। शुक्ल पक्ष में 15 दिन होते हैं जब चंद्रमा बढ़ता है, जबकि कृष्ण पक्ष में 15 दिन होते हैं जब चंद्रमा घटता है। शुक्ल पक्ष का अंतिम दिन पूर्णिमा तिथि कहलाता है और कृष्ण पक्ष का अंतिम दिन अमावस्या तिथि कहलाता है। शास्त्रों के अनुसार, शुक्ल पक्ष के 15 दिन देवताओं के दिन माने जाते हैं, जबकि कृष्ण पक्ष के 15 दिन पितरों के दिन माने जाते हैं। देवताओं के दिनों को उत्तरायण और पितरों के दिनों को दक्षिणायन काल कहा गया है। गीता में यह भी बताया गया है कि जिनकी मृत्यु देवताओं के काल यानी शुक्ल पक्ष में होती है, वे जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाते हैं, जबकि जिनकी मृत्यु पितरों के काल यानी कृष्ण पक्ष में होती है, उन्हें फिर से पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ता है

Categories
धर्म

Jitiya Vrat 2024: जितिया व्रत तिथि, मुहूर्त और पूजा विधि

Jitiya Vrat : जितिया व्रत कब है, यह सवाल हर साल महिलाओं के मन में उठता है। इस साल जितिया व्रत का नहाय-खाय 22 सितंबर और पारण 25 सितंबर को है।आइए जानते हैं जितिया व्रत से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारी विस्तार से।

जितिया व्रत, जिसे जीवितपुत्रिका व्रत भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में माताओं का एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत अपनी संतान की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए किया जाता है। मान्यता है कि भविष्य पुराण के अनुसार इस व्रत को करने से संतान की आयु लंबी होती है।

यह व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी वृद्धा अष्टमी से शुरू होता है और नवमी तिथि को पारण किया जाता है। इस व्रत में भगवान जीमूतवाहन की पूजा की जाती है। यह व्रत काफी कठिन होता है क्योंकि व्रती महिलाएं 36 घंटे तक निराहार रहती हैं।

इस साल जितिया व्रत की तिथि को लेकर कुछ उलझन है। पंचांग के अनुसार, कभी-कभी सप्तमी और अष्टमी तिथि दोनों को ही वृद्धा अष्टमी कहा जाता है। इसलिए, सटीक तिथि जानने के लिए स्थानीय पंडित या पंचांग का सहारा लेना बेहतर होगा।

जितिया नहाय खाय कब है

जितिया व्रत की शुरुआत नहाय-खाय से होती है जो इस साल 23 सितंबर को है। इस पवित्र दिन, माताएं नदी या तालाब में स्नान करके अपनी संतान के सुख और समृद्धि के लिए भगवान जीमूतवाहन की पूजा करती हैं। तेल और झिमनी के पत्तों का विशेष महत्व है, जिन्हें संतान के माथे पर लगाकर आशीर्वाद दिया जाता है।

जितिया ओठगन कब है

जितिया व्रत का ओठन एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। इस साल, शास्त्रों के अनुसार, 24 तारीख को सूर्योदय से 2 घंटे पहले ओठन करना शुभ माना जाता है। ओठन के समय, व्रती महिलाएं चूड़ा दही या अपनी पसंद का कोई अन्य भोजन ग्रहण करती हैं। एक विशेष परंपरा के अनुसार, वे दरवाजे से शरीर को टिकाकर पानी पीती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस प्रक्रिया से न केवल उनकी संतान बल्कि उनके भाइयों को भी दीर्घायु का वरदान प्राप्त होता है।

ओठन के बाद से ही व्रती महिलाओं का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है। यह व्रत अगले दिन पारण के समय तक जारी रहता है।

जितिया व्रत की तारीख

आपने बिल्कुल सही कहा है। इस वर्ष पंचांग के अनुसार, 24 तारीख की दोपहर बाद से अष्टमी तिथि लग रही है। चूंकि जितिया व्रत सप्तमी वृद्धा अष्टमी पर किया जाता है, इसलिए इस बार व्रत की शुरुआत 24 तारीख की सुबह से ही मान ली जाएगी। और जब अष्टमी तिथि का समापन होगा, यानी 25 तारीख को जितिया व्रत का पारण किया जाएगा।

जितिया व्रत का पारण

आपने बिल्कुल सही कहा है। इस वर्ष जितिया व्रत का पारण 25 तारीख को शाम 5 बजकर 25 मिनट पर होगा। इसी समय व्रती महिलाओं को दातुन लेना चाहिए। इसके बाद स्नान करके पूजा-पाठ करना चाहिए और फिर अन्न-जल ग्रहण करना चाहिए

Categories
धर्म

22 सितंबर: सूर्य देव की कृपा से ये 5 राशियां हुईं मालामाल! रवि योग के शुभ प्रभाव से इन जातकों के जीवन में आएगी खुशियों की बाढ़

कल, 22 सितंबर को कई शुभ योग बन रहे हैं, जिनमें हर्षण योग और रवि योग भी शामिल हैं। ये योग कन्या, तुला, कुंभ सहित 5 अन्य राशियों के लिए विशेष लाभ लेकर आएंगे। सूर्य देव की कृपा से इन राशियों के जातकों का दिन शुभ रहेगा। सूर्य देव की कृपा से इन राशियों के जातकों को कारोबार, नौकरी और पारिवारिक जीवन में सफलता मिल सकती है।

रविवार का दिन है खास! 22 सितंबर को बन रहे हर्षण योग, रवि योग और कृतिका नक्षत्र का संयोग कुछ खास राशियों के लिए बेहद शुभ साबित होने वाला है। इस दिन चंद्रमा वृषभ राशि में संचार कर रहा है जो संपत्ति से जुड़े मामलों के लिए अच्छा संकेत है। कन्या, तुला, कुंभ सहित 5 राशियों के लिए तो यह दिन सोने के अंडे देने वाली मुर्गी साबित हो सकता है। इन राशियों के जातकों को अचानक धन लाभ, संपत्ति खरीदने में सफलता मिल सकती है। साथ ही इनकी किस्मत चमकने वाली है। सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए कुछ सरल उपायों को अपनाकर आप अपने जीवन में खुशहाली ला सकते हैं।

मेष राशि वालों के लिए कैसा रहेगा 22 सितंबर का दिन

मेष राशि वालों के लिए रविवार का दिन है खास! आज आपकी व्यक्तित्व में चार चांद लगेंगे और आपके आसपास का माहौल भी खुशनुमा रहेगा। सूर्य देव की कृपा से धन लाभ के नए रास्ते खुलेंगे और आपकी आमदनी में बढ़ोतरी होगी। भाइयों का सहयोग मिलने से पारिवारिक व्यापार में तरक्की होगी। नौकरीपेशा लोगों के लिए दिन आरामदायक रहेगा और नए अवसर भी मिल सकते हैं। परिवार के साथ समय बिताने और बच्चों के भविष्य के बारे में सोचने का दिन है। और उनके साथ कहीं बाहर घूमने जाने की योजना भी बनाएंगे।

मेष राशि वालों के लिए रविवार के दिन का उपाय : रविवार को तांबे का एक सिक्का बहते पानी में प्रवाहित करें। मन में कोई भी मनोकामना लेकर करें, आपकी मनोकामना पूरी होगी।

कर्क राशि वालों के लिए कैसा रहेगा 22 सितंबर का दिन :

कर्क राशि वालों के लिए कल का दिन बेहद खास है! सामाजिक और धार्मिक कार्यों में आपका मन लगेगा। किसी शुभ कार्य में शामिल होने का मौका मिलेगा। घर में शांति और सुख का वातावरण रहेगा। जो लोग किराए के मकान में रहते हैं उन्हें अपने घर का सपना पूरा होता दिखाई देगा। व्यापारी वर्ग के लिए दिन लाभदायक रहेगा।जिससे व्यापार में बंपर लाभ होगा।ससुराल पक्ष से सहयोग मिलेगा और माता-पिता का आशीर्वाद आपके लिए वरदान साबित होगा।

कर्क राशि वालों के लिए रविवार के दिन का उपाय : रविवार को सूर्य देव को जल अर्पित करते समय चावल, लाल मिर्च के कुछ दाने और लाल फूल मिलाएं। इससे नौकरी और व्यापार में उन्नति होगी।

कन्या राशि वालों के लिए कैसा रहेगा 22 सितंबर का दिन:

कन्या राशि वालों के लिए कल का दिन बेहद शुभ है! अधूरे काम पूरे होंगे और शुभ समाचार मिलने की संभावना है। भाग्य का साथ मिलेगा और आपका स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। व्यापार में लाभ होगा और पारिवारिक जीवन सुखमय रहेगा। भाई-बहनों का सहयोग मिलेगा और भाग्य का साथ मिलने से कल आपके आसपास का माहौल अच्छा रहेगा, जिससे आपके मन में कई सकारात्मक विचार आएंगे और आपका स्वास्थ्य भी अच्छी रहने वाला है। अगर आप पार्टनरशिप में बिजनस कर रहे हैं तो कल आपको अच्छा लाभ होगा और पार्टनर के साथ आपके संबंध भी अच्छे रहेंगे। वैवाहिक जीवन में अगर कोई अनबन चल रही है तो कल वह खत्म हो जाएगी और पति-पत्नी के बीच आपसी तालमेल और भी बेहतर होता जाएगा। भाई-बहनों का सहयोग हर कदम पर मिलता रहेगा और परिवार में सुख-शांति बनी रहेगी। दोस्तों से मुलाकात होगी।

कन्या राशि वालों के लिए रविवार के दिन का उपाय : अपनी मनोकामना बरगद के पत्ते पर लिखकर बहते पानी में प्रवाहित करें।

तुला राशि वालों के लिए कैसा रहेगा 22 सितंबर का दिन :

तुला राशि वालों के लिए कल का दिन बेहद शुभ है! भाग्य का साथ मिलेगा और आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी। छात्रों की पढ़ाई में मन लगेगा। मान-सम्मान में वृद्धि होगी और प्रतिष्ठित लोगों से मुलाकात होगी। व्यापार में नई योजनाएं सफल होंगी। धन लाभ होगा और फिजूलखर्ची कम होगी। परिवार में सुख-शांति रहेगी और जीवनसाथी के साथ संबंध मधुर होंगे।

तुला राशि वालों के लिए रविवार के दिन का उपाय : सूर्य देव को गुड़-घी अर्पित कर सूर्य चालीसा का पाठ करें। इससे धन संबंधी समस्याएं दूर होंगी।

कुंभ राशि वालों के लिए कैसा रहेगा 22 सितंबर का दिन :

कुंभ राशि वालों के लिए कल का दिन बेहद खास है! पूरे दिन मौज-मस्ती होगी और दोस्तों के साथ अच्छा समय बिताएंगे। सेहत अच्छी रहेगी और ऊर्जा से भरपूर रहेंगे। यात्रा का योग बन रहा है और पैसों की समस्या दूर होगी। व्यापार में लाभ होगा और घर का वातावरण खुशनुमा रहेगा। लव लाइफ में नया मोड़ आ सकता है। दोस्तों से मिलने वाली जानकारी आपके लिए फायदेमंद साबित होगी।

कुंभ राशि वालों के लिए रविवार के दिन का उपाय :रविवार को सूर्यदेव को जल चढ़ाएं, आदित्य स्तोत्र का पाठ करें और नमक रहित भोजन करें।

नोट : यह जानकारी जनता के हित में दी जा रही है। ज्योतिष और धर्म से जुड़े ये उपाय और सलाहें आपकी आस्था और विश्वास पर आधारित हैं। हम इनके परिणामों के बारे में कोई दावा नहीं करते हैं

Categories
धर्म

Pitru Paksha 2024 Diye ka Upay पितृ पक्ष में रोजाना इन 5 पवित्र स्थानों पर दीपक जलाकर आप न केवल अपने पितरों को प्रसन्न कर सकते हैं बल्कि मां लक्ष्मी का भी आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।

Pitru Paksha 2024 Diye ka Upay : आज आश्विन मास की प्रतिपदा तिथि से पितृ पक्ष का आरंभ हो गया है। इन पंद्रह दिनों में हम अपने पूर्वजों को याद करते हुए श्राद्ध करते हैं। मान्यता है कि इस दौरान हमारे पितर धरती पर आते हैं और हमें आशीर्वाद देते हैं। अगर हम रोजाना घर के इन चार स्थानों पर दीपक जलाएं तो न सिर्फ पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है, बल्कि मां लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं।

पितृ पक्ष में दीपक जलाकर आप अपने पूर्वजों को प्रसन्न कर सकते हैं और मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। आइए जानते हैं आपको रोजाना किन 4 जगहों पर दीपक जलाना है।

पितृ पक्ष में दक्षिण दिशा में सरसों के तेल का दीपक जलाना बहुत शुभ माना जाता है। क्योंकि दक्षिण दिशा पितरों की दिशा होती है और सरसों का तेल यमराज को समर्पित होता है। इससे पितर प्रसन्न होते हैं और पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।

पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाएं

पितृ पक्ष में रोजाना शाम को पीपल के पेड़ के नीचे काले तिल और सरसों के तेल का दीपक जलाने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है पीपल के पेड़ पर देवी-देवताओं का भी वास होता है, इसलिए पितृ पक्ष में रोजाना यहां दीपक जलाकर रखने से पूर्वजों का आशीर्वाद आपको मिलता है।और मां लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं

घर के मुख्य द्वार पर दीपक जलाएं

घर का मुख्य द्वार बहुत महत्वपूर्ण होता है। पितृ पक्ष में शाम को यहां दीपक जलाने से न सिर्फ पितरों का आशीर्वाद मिलता है, बल्कि मां लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं। मुख्य द्वार से मां लक्ष्‍मी का भी प्रवेश होता है। इससे घर में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।

पितरों की तस्‍वीर के नीचे दीपक जलाएं

पितृ पक्ष में अपने पूर्वजों की तस्वीर पर दीपक जलाना बहुत शुभ माना जाता है। इससे पितरों का आशीर्वाद मिलता है और घर में कभी धन की कमी नहीं होती।

ईशान कोण में भी जलाएं दीपक

पितृ पक्ष में ईशान कोण में घी का दीपक और किचन में सरसों का तेल का दीपक जलाने से मां लक्ष्मी और पितर दोनों प्रसन्न होते हैं। इससे घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है।इस उपाय को पूरे 15 दिन लगातार करने से आपके घर में सुख और सुविधाएं बढ़ने के साथ ही जीवन में सुकून शांति स्‍थापित होती है।

Categories
धर्म

आज मनाई जाएगी अनंत चतुर्दशी और विश्वकर्मा जयंती: जानें महत्व और पूजा विधि

आज अनंत चतुर्दशी का पावन पर्व है। इस दिन भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा की जाती है। भक्तजन बिना नमक खाए व्रत रखते हैं और 14 गाठों वाला अनंत सूत्र धारण करते हैं। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही, आज विश्वकर्मा जयंती भी मनाई जा रही है। इस दिन सभी कारीगर अपने औजारों की पूजा करते हैं और भगवान विश्वकर्मा से आशीर्वाद लेते हैं।

आज, मंगलवार को, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर अनंत चतुर्दशी का पावन पर्व मनाया जा रहा है। इस दिन भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा की जाती है। भक्तजन बिना नमक खाए व्रत रखते हैं और 14 गाठों वाला पीले-नारंगी रंग का अनंत सूत्र धारण करते हैं। मान्यता है कि ये 14 गाठें ब्रह्मांड के 14 लोकों का प्रतिनिधित्व करती हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इस दिन जो भी भक्त सच्चे मन से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

सभी समस्याएं होंगी दूर

ज्योतिषाचार्य एस.एस. नागापाल के अनुसार, चतुर्दशी तिथि सोमवार दोपहर 3:10 बजे से शुरू होकर मंगलवार सुबह 11:44 बजे तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार, अनंत चतुर्दशी का व्रत मंगलवार को रखा जाएगा। मान्यता है कि इस दिन शुभ मुहूर्त में भगवान विष्णु की पूजा करने से जीवन की सभी समस्याओं का निवारण होता है। अनंत सूत्र धारण करने और कथा सुनने से भक्तों को मन की शांति और आशीर्वाद प्राप्त होता है।

14 लोक की रचना की

शास्त्रों के अनुसार, भगवान विष्णु ने सृष्टि के आरंभ में चौदह लोकों – तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भू, भुवः, स्वः, जन, तप, सत्य और मह – की रचना की थी। इन सभी लोकों की रक्षा और पालन के लिए भगवान विष्णु स्वयं चौदह रूपों में प्रकट हुए थे, इसीलिए उन्हें अनंत कहा जाता है। अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु के इन अनंत रूपों की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन श्री विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करने से सभी पापों का नाश होता है और भगवान की कृपा प्राप्त होती है।


आदि शिल्पी विश्वकर्मा देव की जयंती आज

आज, मंगलवार को, देव शिल्पी विश्वकर्मा की जयंती मनाई जा रही है। एक अनूठी बात यह है कि विश्वकर्मा जयंति की तिथि अन्य त्योहारों की तरह निश्चित नहीं होती। यह हर साल 17 सितंबर को ही मनाई जाती है, भाद्रपद मास में सूर्य के कन्या राशि में प्रवेश करने के बाद। विश्वकर्मा जी को आदि शिल्पी माना जाता है। मान्यता है कि उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण की द्वारिकापुरी, भगवान जगन्नाथ का मंदिर और कई अन्य पौराणिक स्थलों का निर्माण किया था।

वास्तु के पुत्र हैं विश्वकर्मा

अलीगंज स्थित स्वास्तिक ज्योतिष केंद्र के आचार्य एसएस नागपाल के अनुसार, सूर्य ने सोमवार शाम 7:53 पर कन्या राशि में प्रवेश कर लिया है। इस अवसर पर विश्वकर्मा जयंती मनाई जा रही है। इस दिन सभी कारीगर, जैसे कि राज मिस्त्री, मोटर मैकेनिक, और फेब्रीकेटर, अपने औजारों की पूजा करते हुए भगवान विश्वकर्मा से आशीर्वाद लेते हैं। कारखाने भी बंद रहते हैं। हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार, विश्वकर्मा जी ब्रह्मा जी के पुत्र धर्म की सातवीं संतान वास्तु के पुत्र थे

Exit mobile version