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Vikram Batra: कारगिल का शेर था ‘शेरशाह’, नाम सुन दुश्‍मन भी थर-थर कांपते थे

Vikram Batra: कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas 2024) स्वतंत्र भारत के सभी देशवासियों के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिवस है। भारत में हर साल 26 जुलाई को यह दिवस मनाया जाता है।

इस दिन 1999 में भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच कारगिल युद्ध हुआ था, जो लगभग 60 दिनों तक चला था। 26 जुलाई के दिन इसका अंत हुआ और इसमें भारत विजयी हुआ। कारगिल विजय दिवस युद्ध में बलिदान हुए भारतीय जवानों के सम्मान में मनाया जाता है।

Vikram Batra: हिमाचल के लाल से कांपते थे दुश्मन

इस युद्ध में हिमाचल के लाल परमवीर चक्र विजेता कैप्टन विक्रम बत्रा (Captain Vikram Batra) का भी बड़ा योगदान है। दुश्मन भी इनके नाम से कांपते थे। कैप्टन विक्रम बत्रा देश के लिए दुश्मनों से लड़ते हुए बलिदान हो गए थे। दुश्मनों को धूल चटाने वाले विक्रम बत्रा का जन्म 9 सितंबर 1974 को हुआ था। कांगड़ा जिले के पालमपुर में घुग्गर गांव में जन्मे विक्रम को युद्ध में दुश्मन भी शेरशाह के नाम से जानते थे। उनकी बहादुरी देश के लिए मिसाल है।

कैसे पड़ा शेरशाह नाम?

विक्रम को हांगकांग में अच्छे वेतन पर मर्चेंट नेवी की नौकरी मिल रही थी, लेकिन उन्होंने देशसेवा के लिए भारतीय सेना को चुना। 20 जून 1999 को सुबह 3.30 बजे कैप्टन बत्रा ने अपने साथियों के साथ श्रीनगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर सबसे महत्वपूर्ण चोटी 5140 फतह की थी।

जीत के बाद बत्रा ने इस चोटी से संदेश दिया था कि ‘यह दिल मांगे मोर’ (Ye Dil Mange More)। बाद में यह पूरे देश में लोकप्रिय हो गया। अदम्य वीरता और पराक्रम के लिए कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट कर्नल वाय.के. जोशी (Commanding Officer Lieutenant Colonel YK Joshi) ने विक्रम को ‘शेरशाह’ (Shershah) उपनाम से नवाजा था।

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युवाओं के हीरो कैप्टन Vikram Batra

कारगिल युद्ध (Kargil War) को सालों बीत गए हैं, लेकिन आज भी इस जांबाज सिपाही की कहानियां लोगों को जोश से भर देती हैं। आज भी जब कोई युवा उनके किस्से सुनता है तो हर किसी के दिल से एक ही आवाज निकलती है कि वह भी कैप्टन बत्रा की तरह ही देश की सेवा करना चाहते हैं।

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