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ज्ञानवापी मामला: वाराणसी के ग्यारहवें सदी के पुरातात्विक स्थल में हिन्दू मंदिर की पहचान को लेकर एक महत्वपूर्ण घटना के रूप में आई ग्यारहवें सदी के पुरातात्विक स्थल में हिन्दू मंदिर की पहचान को लेकर एक महत्वपूर्ण घटना के रूप में आई भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) के सर्वेक्षण में स्पष्ट प्रमाण मिले हैं। न्यायालय के आदेश पर, गुरुवार को सभी प्रतिभागियों को 839 पृष्ठों की रिपोर्ट की प्रिंटेड कॉपी पहुंचाई गई। मंदिर पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद इसकी 20 पृष्ठों की फाइंडिंग रिपोर्ट के आधार पर प्रेस वार्ता की।
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ज्ञानवापी की दीवारों पर उकेरी गई हिंदू धर्म से संबंधित तस्वीरें और लिखे गए शब्द स्पष्ट रूप से इस संकेत को दिखा रहे हैं कि यहां पूर्व में एक विशाल मंदिर स्थित था। एएसआइ की सर्वेक्षण रिपोर्ट में इस विवरण का उल्लेख किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, एक बीम पर नागरी लिपि में 'कासी' लिखा हुआ है, जिससे साफ होता है कि यह 17वीं शताब्दी का है। इसमें इसकी तस्वीरें भी शामिल हैं।
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एक खास स्थान पर संस्कृत में श्रीमच्छा, पा भृगुवास, वद्विजातिश्च, आय अर्जानी, णरायै परोप, जातिभि: धर्मज्ञ: इस लेख से संबंधित हैं। एएसआइ ने इसे 16वीं शताब्दी का विशेष धारित बताया है। इसी तरह, एक लिंटेल बीम पर संस्कृत में 'यो न मा महाचद' लिखा हुआ मिलता है। एक अन्य दीवार पर संस्कृत में 'रुद्राद्या व श्रावना' अंकित हैं।
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इन सभी शब्दों का संस्कृत में लिखा जाना, ज्ञानवापी के प्राचीन इतिहास को प्रदर्शित कर रहा है। एक दीवार पर चार पंक्तियां गायब हो गई हैं, लेकिन एक शब्द 'ग' स्पष्ट रूप से दिख रहा है। इनकी अन्य पंक्तियों के मिटने की वजह से इनका खंडित होना बताया गया है।
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इसी रूप में, मुख्य द्वार पर उत्तरी दिशा में तेलुगु में कई शब्दों का उल्लेख है। इन शब्दों का रिपोर्ट में अनुवाद भी दिखाया गया है। महा, (शि). न दीपनु, कुनु, हद.म, मवि (रति), डुहच्च, र आदि का उल्लेख किया गया है। इसी तरह स्याकस्य, लये, कान्होलषुम, देशोकुंकाल, मंड, ल्यांकला, ला आदि शब्दों को भी लिखा गया है।
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विष्णु शंकर जैन ने बताया कि एएसआई सर्वे के दौरान ज्ञानवापी में कई शिलालेख देखे गए हैं। रिपोर्ट में सर्वेक्षण के दौरान 34 ऐसे शिलालेखों के मिलने की बात कही गई है जो पहले से मौजूद हिंदू मंदिरों के हैं और जिनका मौजूदा ढांचे के निर्माण और मरम्मत के दौरान फिर से उपयोग किया गया है। इनमें देवनागरी, तेलुगु और कन्नड़ लिपियों के शिलालेख भी शामिल हैं।
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संरचना में पहले के शिलालेखों के पुनः उपयोग से स्पष्ट होता है कि पूर्व में की गई संरचनाओं को नष्ट कर दिया गया था और उनके अंशों को मौजूदा संरचना के निर्माण में पुनः से उपयोग किया गया। इन शिलालेखों में देवताओं के तीन नाम जैसे जनार्दन, रुद्र और उमेश्वर पाए जाते हैं। इनमें देवनागरी, तेलुगु और कन्नड़ लिपियों के शिलालेख भी शामिल हैं।