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Kartam Bhugtam Review: ज्योतिष और जिंदगी के बीच रस्साकशी की रोमांचक कहानी

Kartam Bhugtam Review: ज्योतिष की आड़ में लोगों के साथ ठगी की खबरें अक्सर सुर्खियों में रहती हैं। अब सोहम पी शाह ने भी इसी विषय को अपनी कहानी का आधार बनाया है। बाद में यह कहानी प्रतिशोध ड्रामा में बदल जाती है। फिल्म का विषय अच्छा है, लेकिन कर्मों का फल उतना चौंकाने वाला नहीं रहा।

क्या है ‘Kartam Bhugtam’ की कहानी?

अपने पिता की मृत्यु के बाद, न्यूजीलैंड में रह रहे देव जोशी (श्रेयस तलपड़े) अपने गृहनगर भोपाल लौटते हैं ताकि अपनी जमीन-जायदाद बेचकर न्यूजीलैंड में अपना स्टार्टअप सेटअप कर सकें। उनका बचपन का दोस्त गौरव (गौरव डागर) अपनी मृत्यु की कगार पर पहुंची मां को देखने अस्पताल जाता है।

फिर वह ज्योतिष अन्ना (विजय राज) से मिलता है, जो दुबई में अपना होटल बनाना चाहता है। अन्ना उसे ज्योतिष उपाय बताता है और जाते समय देव से कहता है, “जाने दो, नहीं होने का।” देव का ज्योतिष में विश्वास नहीं होता और वह सरकारी तामझाम में फंस जाता है।

देव अपनी गर्लफ्रेंड जिया (अक्षा पारदासनी) से वीडियो कॉल पर बात करता रहता है। इस बीच, गौरव को दुबई से नौकरी का ऑफर लेटर आ जाता है। देव अकेले ही बैंक और सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाकर परेशान हो जाता है। उसे अन्ना का ख्याल आता है।

अन्ना उसे उपाय बताते हैं, जिसके बाद बैंक में फंसे दो करोड़ रुपये मिल जाते हैं। फिर बाकी उलझे मसले भी सुलझने लगते हैं। उसकी निकटता अन्ना की पत्नी सीमा (मधु) और बेटे समीर (ऋषभ कोहली) से हो जाती है। देव जल्दी वापस आने का दबाव बना रही जिया का फोन उठाना भी बंद कर देता है।

कहानी कुछ महीने आगे बढ़ती है। जिया भोपाल आती है और देव को अजीबोगरीब हालत में पाती है। वह उसे मनोचिकित्सक को दिखाती है। स्वास्थ्य में थोड़ा सुधार होने के बाद दोनों न्यूजीलैंड के लिए लौटते हैं। बैंकॉक में कनेक्टिंग फ्लाइट कैंसल हो जाती है। वहां देव को अन्ना दिखता है, जो अपने परिवार के साथ ठाठ से रह रहा है। देव उसे कैसे सबक सिखाता है, कहानी इसी के इर्द-गिर्द घूमती है।

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Kartam Bhugtam: कैसा है फिल्म का स्क्रीनप्ले और अभिनय?

‘काल’ और ‘लक’ जैसी फिल्मों का निर्देशन कर चुके सोहम पी शाह की यह फिल्म मूल रूप से इस बात पर प्रकाश डालती है कि कैसे परेशान लोग उम्मीद की तलाश में ऐसी जगहों को ढूंढते हैं, जहां से उन्हें कोई राहत मिल सके।

ज्योतिष के प्रति देव का लगाव इतना ज्यादा बढ़ जाता है कि वह बैंक अकाउंट नंबर भी ऐसा मांगता है, जिसका जोड़ सात हो। इसी तरह हरे रंग की शर्ट के पीछे भागना दर्शाता है कि किस प्रकार अंधविश्वास ने उसकी सोच को जकड़ लिया है।

देव आम जनता का प्रतिनिधित्व करता है, जो भगवान, संत या ज्योतिषियों पर अपना विश्वास रखते हैं और उन्हें अपनी जीत का एकमात्र साधन मानते हैं।

Kartam Bhugtam की शुरुआत अच्छी है, लेकिन कई दृश्यों में दोहराव है। कहानी का पहला हिस्सा खिंचा हुआ लगता है। समस्या किरदारों के गढ़ने और उन्हें पेश करने में है। अन्ना और सीमा के अतीत के बारे में ठोस जानकारी नहीं दी गई है। फिल्म में पात्रों का उच्चारण भी एक समान नहीं है।

Kartam Bhugtam का भार श्रेयस तलपड़े और विजय राज के कंधों पर है। देव की मासूमियत को श्रेयस तलपड़े ने समुचित तरीके से अंगीकार किया है। उनका किरदार सुध-बुध खो देता है, फिर अन्ना को देखते ही वह सामान्य हो जाता है। यह हिंदी फिल्मों के घिसे-पिटे फार्मूले की तरह है।

अन्ना के तौर पर विजय राज का काम काबिले तारीफ है। एक सीन में अन्ना कहता है, “यह मेरा टाइम बदलेगा,” लेकिन उसका पहले का समय कैसा था, इसकी जानकारी ना होना अखरता है। अक्षा अपने किरदार के साथ न्याय करती हैं। मधु को दो व्यक्तित्व निभाने का अवसर मिला है और वह अपने किरदार में प्रभाव छोड़ती हैं। उम्मीद है कि भविष्य में उनकी प्रतिभा को देखते हुए उन्हें दमदार भूमिकाएं मिलेंगी।

Kartam Bhugtam में कई पल ऐसे आते हैं, जब आप कहानी के साथ जुड़ने लगते हैं, लेकिन यह आपको लंबे समय तक बांध कर नहीं रख पाते। फिल्म में ट्विस्ट और टर्न्स हैं, लेकिन पूर्वानुमानित होने की वजह से मजा किरकिरा हो जाता है। थ्रिलर फिल्म का क्लाइमेक्स प्रभावित नहीं करता। गीत-संगीत भी असर नहीं छोड़ता।

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By Buzztidings Hindi

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