Thursday, November 21, 2024
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शास्त्रों के अनुसार इंदिरा एकादशी के दिन मरने वालों को क्यों रहना पड़ता है भूखा?

शास्त्रों के अनुसार इंदिरा एकादशी के दिन मरने वालों को क्यों रहना पड़ता है भूखा?अधिक जानकारी के लिए ये भी पढ़े

शास्त्रों के अनुसार इंदिरा एकादशी 28 सितंबर को है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और पितरों का श्राद्ध करने का विधान है। लेकिन क्या आप जानते हैं इस दिन स्वर्ग लोक जाने वाली आत्माओं का एक रहस्य? आइए जानते हैं कि आखिर क्यों स्वर्ग में भी रहना पड़ता है भूखा?

पितृ पक्ष है, जिसमें दान, तर्पण और श्राद्ध कर्म करने का विधान है। शास्त्रों और पुराणों के अनुसार, पितृ पक्ष में पितृ नाम का श्राद्ध करने से पितृ दोष से छुटकारा मिलता है। गुरु पुराण कहता है कि अगर कोई व्यक्ति एकादशी के दिन मर जाता है, तो उसकी आत्मा सीधे स्वर्ग में जाती है और जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाती है। लेकिन उस आत्मा को एकादशी के दिन मरने पर स्वर्ग में भूखा रहना पड़ता है। आइए पता चलेगा, ऐसा क्यों होता है

परिजनों के बीच भटकती है आत्मा

गरुड़ पुराण सहित अन्य पुराणों में बताया गया है कि जब कोई व्यक्ति मरता है, तो यमदूत उसकी आत्मा को यमलोक ले जाते हैं, जहां उसके पाप और पुण्य का हिसाब किया जाता है। 24 घंटे बाद आत्मा को उसके घर वापस भेजा जाता है। मृतक की आत्मा यमदूतों द्वारा छोड़ दी जाती है और वह अपने परिजनों को पुकारती है, लेकिन उसे कोई सुन नहीं पाता। आत्मा अपने परिजनों को रोते हुए देखकर फिर से अपने शरीर में लौटने की कोशिश करती है, लेकिन यमदूतों के बंधन में जकड़ी रहती है।

इसलिए एकादशी के दिन आत्मा को रहना पड़ता है भूखा

जिस व्यक्ति की मृत्यु एकादशी के दिन होती है, वह सीधे स्वर्ग पहुंचता है, लेकिन उसे इस दिन भूखा रहना पड़ता है। गरुड़ पुराण और अन्य पुराणों के अनुसार, एकादशी के दिन आत्मा को इसलिए भूखा रहना पड़ता है क्योंकि इस दिन स्वर्ग सहित सभी स्थानों पर भंडारा बंद रहता है। स्वर्ग में सभी एकादशी का व्रत रखते हैं। व्यक्ति के पाप और पुण्य का हिसाब तो किया जाता है, लेकिन उसे भोजन नहीं मिलता। बैकुंठ में भी यही स्थिति होती है, जहां भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और वहां के सभी निवासी एकादशी का व्रत रखते हैं, इसलिए वहां भी भंडारा बंद रहता है।

इंदिरा एकादशी का महत्व

पितृ पक्ष में पड़ने वाली इंदिरा एकादशी का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा के साथ-साथ पितरों का श्राद्ध करना चाहिए। ऐसा करने से पितर प्रसन्न होते हैं और परिवार में सुख-शांति आती है। मान्यता है कि इंदिरा एकादशी का व्रत सात पीढ़ियों के पितरों को तृप्त करता है।

जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है व्यक्ति

गीता में बताया गया है कि माह के तीस दिनों को चंद्रमा के घटने और बढ़ने के आधार पर दो भागों में बांटा गया है – शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। शुक्ल पक्ष में 15 दिन होते हैं जब चंद्रमा बढ़ता है, जबकि कृष्ण पक्ष में 15 दिन होते हैं जब चंद्रमा घटता है। शुक्ल पक्ष का अंतिम दिन पूर्णिमा तिथि कहलाता है और कृष्ण पक्ष का अंतिम दिन अमावस्या तिथि कहलाता है। शास्त्रों के अनुसार, शुक्ल पक्ष के 15 दिन देवताओं के दिन माने जाते हैं, जबकि कृष्ण पक्ष के 15 दिन पितरों के दिन माने जाते हैं। देवताओं के दिनों को उत्तरायण और पितरों के दिनों को दक्षिणायन काल कहा गया है। गीता में यह भी बताया गया है कि जिनकी मृत्यु देवताओं के काल यानी शुक्ल पक्ष में होती है, वे जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाते हैं, जबकि जिनकी मृत्यु पितरों के काल यानी कृष्ण पक्ष में होती है, उन्हें फिर से पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ता है

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