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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को नए संसद भवन में पहले कानून को पेश करने का ऐलान किया। उन्होंने इसके तहत महिला सशक्तीकरण के लिए सरकार द्वारा "नारी शक्ति वंदन विधेयक" को पेश करने की घोषणा की है। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने सदन में इस विधेयक को पेश किया, जिसमें महिलाओं के लिए लोकसभा और विधानसभाओं में 33 फीसदी की आरक्षित सीटों का ऐलान किया गया। इसका मतलब है कि अब लोकसभा में 181 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी।
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केंद्रीय कानून मंत्री मेघवाल ने बताया कि महिलाओं को लोकसभा और विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं में 33 प्रतिशत की आरक्षण देने की योजना है। उन्होंने इसके बाद सदन में महिलाओं की संख्या में वृद्धि होगी कहा। फिलहाल, महिला आरक्षण की अवधि 15 साल है, लेकिन इसे बढ़ाने का अधिकार लोकसभा के पास होगा। मेघवाल ने आरोप लगाया कि विधेयक को पहले कई बार जानबूझकर पास नहीं किया गया था।
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प्रधानमंत्री ने इस तरीके से कहा, "महिलाओं को अधिकार और शक्ति देने के कामों के लिए शायद ईश्वर ने मुझे चुना है। हमारी सरकार ने इस दिशा में कदम बढ़ाया है, और कल ही कैबिनेट में महिला आरक्षण विधेयक को मंजूरी दी गई है।
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प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी कहा कि "चाहे स्पेस हो या स्पोर्ट्स हो, दुनिया महिलाओं की ताकत को देख रही है। हमने जी20 में महिलाओं के नेतृत्व में विकास की चर्चा की है। दुनिया इसे स्वागत कर रही है और स्वीकार कर रही है। दुनिया समझ रही है कि सिर्फ महिलाओं के विकास की बात पर्याप्त नहीं है।"
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महिला आरक्षण विधेयक 2010 के अद्वितीय निकाय से अलग होने का प्रस्तावना है, और इसमें संसद और विधानसभाओं के बाद अन्य संगठनों में भी महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान हो सकता है। यह विचार दिया जा रहा है कि महिला आरक्षण में रोटेशन के आधार पर, लगभग तीन में से एक सीटों पर महिलाओं को आरक्षित किया जा सकता है।
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महिलाओं को संसद में आरक्षण देने की मांग 1996 से हो रही है, लेकिन अब तक इस प्रयास में सफलता नहीं मिली है। 2010 में, यूपीए सरकार ने महिला आरक्षण विधेयक को संसद के उच्च सदन, यानी राज्यसभा में पेश किया था। इस विधेयक को वहां से मंजूरी भी मिल गई थी, लेकिन सहयोगी पार्टियों के दबाव के कारण यह विधेयक लोकसभा में नहीं पास कर सका।
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रिपोर्ट्स के अनुसार, महिला आरक्षण विधेयक के संदर्भ में विपक्षी गठबंधन में भी विचारविमर्श हो सकता है। यह आवश्यकता उत्पन्न हो रही है क्योंकि कुछ विपक्षी पार्टियां इस विधेयक में एससी/एसटी और ओबीसी समुदाय के लिए विशेष आरक्षण की मांग कर रही हैं।
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वहीं, 2010 में महिला आरक्षण विधेयक को प्रस्तुत करने वाली कांग्रेस ने इसमें किसी भी उप-आरक्षण का प्रावधान नहीं किया था। इस परिस्थिति में, यह देखने योग्य है कि नए विधेयक पर विपक्षी पार्टियां कैसे प्रतिक्रिया दे रही हैं।
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