भारत के गुजरात में काली माता का एक ऐसा ही अनोखा मंदिर है जिसके बारे में मान्यता है कि यहां हर मन्नत बहुत जल्द ही पूरी होती है। आखिर क्या है इस मंदिर की विशेषताएं, आइये जानते हैं विस्तार से। 

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गुजरात के ऊँची पहाड़ियों पर स्थित पावागढ़ का महाकाली मंदिर अपने आप में बहुत खास है। यहा महाकाली मां की दक्षिणमुखी मूर्ति है।  ऐसा कहा जाता है कि रामायण काल में मुनि विश्वामित्र ने यहां कालिका मां की तपस्या की थी। उन्हीं ने प्रतिमा स्थापित कराई थी।

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मां काली की है दक्षिणमुखी मूर्ति  

स्थानीय लोगों के मुताबिक मंदिर को करीब 500 साल पहले सुल्तान महमूद बेगड़ा ने नष्ट कर दिया था। हालांकि, हाल ही में मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया जिसमें मंदिर का नया शिखर तैयार किया गया जिस पर फिर से विधि-विधान पूर्वक ध्वजा फहराई गयी है। 

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500 साल बाद लहरा भगवा 

पावागढ़ पहाड़ी की शुरुआत प्राचीन गुजरात की राजधानी चंपानेर से होती है। यहां तकरीबन 1,471 फुट की ऊंचाई पर 'माची हवेली' स्थित है। यहां से मंदिर तक पैदल पहुंचने लिए लगभग 250 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। यह मंदिर ऊँची पहाड़ियों के बीच लगभग 550 मीटर की ऊंचाई पर है।  

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1471 फीट की ऊंचाई पर 'माची हवेली'

किवदंतियों के अनुसार, पावागढ़ पर्वत की उम्र लगभग 8 करोड़ साल है। यह पहाड़ 40 वर्ग किलोमीटर के घेरे में फैला हुआ है। प्राचीन काल में इस पर्वत पर चढ़ाई करना असंभव था। चारों तरफ खाइयों से घिरे होने के कारण यहां हवा भी काफी तेज चलती है इसलिए इसे ‘पावागढ़’ कहा जाने लगा। 

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8 करोड़ साल है पर्वत की उम्र

पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता सती के दाहिने पैर का अंगूठा यहीं गिरा था जिसके बाद यहाँ शक्तिपीठ की स्थापना की गई। एक कथा और है कि एक बार नवरात्रि के दौरान मंदिर में पारंपरिक नृत्य गरबा का आयोजन किया गया जिसमे स्वयं माता काली ने एक महिला के रूप में हिस्सा लिया था। 

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क्या है मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा

मंदिर परिसर में आम दिनों में श्रद्धालु और पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है। एक दिन में लगभग एक हजार लोग दर्शन पूजन करने के लिए आते हैं लेकिन यहां सबसे ज्यादा रौनक नवरात्रि के दौरान होती है।

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भक्तों और पर्यटकों का उमड़ता है हुजूम

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