Friday, October 4, 2024
spot_img

लेटेस्ट न्यूज

Sarv Pitru Amavasya : सर्वपितृ अमावस्या के अवसर पर श्राद्धकर्म करते हुए आनंदपूर्वक पितरों को विदा करें, जिससे आपके जीवन में सुख-समृद्धि और भाग्योदय की संभावनाएँ प्रबल हो सकें।

Sarv Pitru Amavasya : सर्वपितृ अमावस्या के अवसर पर श्राद्धकर्म करते हुए आनंदपूर्वक पितरों को विदा करें, जिससे आपके जीवन में सुख-समृद्धि और भाग्योदय की संभावनाएँ प्रबल हो सकें।अधिक जानकारी के लिए पढ़ें

Sarv Pitru Amavasya Pujan Vidhi : जिन लोगों के पूर्वजों या माता-पिता का देहावसान अमावस्या के दिन हुआ हो, या यदि किसी को अपने दिवंगत परिजन के निधन की तिथि ज्ञात नहीं होती, उनका श्राद्ध सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या के दिन किया जाता है। इस दिन विशेष रूप से उन पितरों का तर्पण और श्रद्धांजलि दी जाती है, जिनकी मृत्यु की सही तिथि मालूम नहीं होती, ताकि उनकी आत्मा को शांति मिले और उनके आशीर्वाद से परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहे।

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या की संध्या को समस्त पितृगण अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान करने लगते हैं। मान्यता है कि पितृगण सूर्य और चन्द्रमा की किरणों के सहारे अपने लोक की ओर वापस जाते हैं, और इस यात्रा में उनके वंशजों द्वारा जलाए गए दीपों की रोशनी से उन्हें मार्गदर्शन मिलता है। दीपों की इस रोशनी से पितृगण संतुष्ट होकर घर-परिवार को सुख-शांति और समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं, जिससे भाग्य में आने वाली बाधाएं समाप्त हो जाती हैं। इसलिए पितृ विसर्जनी अमावस्या के दिन, संध्या समय पितरों को भोग अर्पित कर, घर की दहलीज पर दीपक जलाकर प्रार्थना करनी चाहिए कि, “हे पितृदेव! यदि हमसे जाने-अनजाने में कोई भूल-चूक हुई हो, तो कृपया उसे क्षमा करें और हमें आशीर्वाद दें कि हम अपने जीवन को सुख-शांति और समृद्धि से भर सकें।”

विधि-विधान पितृ विसर्जनी अमावस्या के दिन मध्यान्ह में स्नान करके सभी पितरों का श्राद्ध और तर्पण करना चाहिए। इस दिन पितरों के लिए ब्राह्मण भोजन का विशेष महत्व होता है। मान्यताओं के अनुसार, विसर्जन के समय पिता, पितामह, प्रपितामह, माता और अन्य पितरों का तर्पण करने का विधान है। इस दिन पितृवंश, मातृवंश, गुरुवंश, श्वसुर वंश और मित्रों के पितरों का भी श्राद्ध किया जा सकता है। गोधूलि बेला में पवित्र नदियों के किनारे जाकर पितरों के लिए दीपदान करना आवश्यक माना गया है। यदि नगर में नदी उपलब्ध न हो, तो पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलाकर पितरों की पूजा की जा सकती है। दक्षिण दिशा की ओर दीपकों की लौ रखते हुए सोलह दीपक जलाने का विधान है, जो पितरों के आशीर्वाद और शांति के प्रतीक होते हैं।

इन दीपकों के पास पूरी, मिठाई, चावल और दक्षिणा रखकर, दोनों हाथ ऊपर कर दक्षिण दिशा की ओर पितरों को विदा किया जाता है। श्वेत रंग के पुष्प अर्पित करते हुए, पितरों को एक वर्ष के लिए विदा किया जाता है। शास्त्रों में कहा गया है, “पितरं प्रीतिमापन्ने प्रीयन्ते सर्वदेवता,” अर्थात् पितरों के प्रसन्न रहने पर ही सभी देवता प्रसन्न होते हैं। तभी मनुष्य के सभी जप, तप, पूजा-पाठ, अनुष्ठान और मंत्र साधना सफल होती हैं, अन्यथा उनका कोई लाभ नहीं होता।

श्राद्ध प्रकाश और यम स्मृति में कहा गया है, “आयुः प्रजां धनं विद्य्नां, स्वर्गम् मोक्षं सुखानि च प्रयच्छन्ति तथा राज्यं पितरः श्राद्ध तर्पिताः।” अर्थात् श्राद्ध से तृप्त पितर हमें आयु, संतान, धन, विद्या, स्वर्ग, मोक्ष, सुख और राज्य प्रदान करते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि पितरों की कृपा से सभी प्रकार की समृद्धि और सौभाग्य प्राप्त होते हैं

जरूर पढ़ें

Latest Posts

ये भी पढ़ें-