Friday, October 4, 2024
spot_img

लेटेस्ट न्यूज

अनिल अंबानी की कंपनी को मिली नई जान, कोर्ट के फैसले से खुशी की लहर

अनिल अंबानी की कंपनी को मिली नई जान, कोर्ट के फैसले से खुशी की लहर जाने ये कैसे हुआ

अनिल अंबानी की कर्ज में डूबी रिलायंस नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) ने कम्युनिकेशंस (RCom) को बड़ी राहत प्रदान की है। ट्रिब्यूनल ने राज्य कर विभाग द्वारा दायर की गई याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें कंपनी से बकाया राशि की मांग की गई थी। NCLAT ने मुंबई बेंच के पहले के आदेश को बरकरार रखते हुए दूसरी याचिका को भी खारिज कर दिया।

रिलायंस कम्युनिकेशंस (RCom), जो अनिल अंबानी के कर्ज में डूबी हुई थी, बहुत राहत मिली है। महाराष् ट्र राज्य कर विभाग की याचिका को नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) ने खारिज कर दिया है। दरअसल, राज्य कर विभाग ने RCom को बकाया भुगतान करने का आग्रह किया था। NCLAT ने अपने निर्णय में निर्णय दिया कि यह याचिका दिवालिया कार्यवाही शुरू होने के बाद का आकलन था। इसलिए इसे हटाया जाता है।

NCLAT की दो सदस्यीय पीठ ने मुंबई बेंच के पूर्व निर्णय को बरकरार रखा। NCLT ने 6.10 करोड़ रुपये के राज्य कर विभाग के दूसरे दावे को खारिज कर दिया।

दोनों मामलों से जुड़ी रकम क‍ितनी?

24 जुलाई 2019 को RCom के खिलाफ 94.97 लाख रुपये का पहला दावा दायर किया गया था। वहीं, 15 नवंबर 2021 को 6.10 करोड़ रुपये का दूसरा दावा दायर किया गया। यह दूसरा दावा 30 अगस्त 2021 के आकलन आदेश के बाद प्रस्तुत किया गया था। पहले दावे को ट्रिब्यूनल ने स्वीकार कर लिया था क्योंकि यह कॉर्पोरेट दिवालियापन समाधान प्रक्रिया (CIPR) की शुरुआत से पहले का था। लेकिन 2021 में पारित आकलन आदेश पर आधारित दूसरे दावे को स्वीकार नहीं किया गया।

2 मार्च 2020 को RCom के लेनदारों की समिति (CoC) ने इस योजना को मंजूरी दी थी, और 15 नवंबर 2021 को राज्य कर विभाग ने अपना दावा दायर किया था। राज्य कर विभाग ने इस आदेश को NCLAT में चुनौती दी, यह तर्क देते हुए कि NCLT को पूरा दावा स्वीकार करना चाहिए था। हालांकि, NCLAT ने इस दलील को खारिज कर दिया। NCLAT ने कहा कि CoC द्वारा योजना को मंजूरी देने के बाद ही अंतिम दावा दायर किया गया था उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि दूसरे दावे को दर्ज करने में हुई देरी को माफ नहीं किया जा सकता।

NCLAT ने अपने आदेश में क्‍या कहा?

NCLAT की पीठ के चेयरपर्सन जस्टिस अशोक भूषण और अरुण बारोका ने कहा, “न्यायनिर्णायक प्राधिकरण (NCLT) द्वारा दिए गए कारणों के अलावा, हमारा मानना है कि CIRP की शुरुआत के बाद किए गए आकलन के आधार पर किया गया दावा स्वीकार नहीं किया जा सकता था।” उन्होंने आगे कहा, “इसलिए, हम याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करने वाले न्यायनिर्णायक प्राधिकरण के आदेश में कोई त्रुटि नहीं पाते हैं। अपील में कोई ठोस आधार नहीं है। अपील खारिज की जाती है।”

जरूर पढ़ें

Latest Posts

ये भी पढ़ें-